हमें क्षमा करें यह ब्लाॅग मैने अपनी बातों को सामने रखने के लिए किया है इससे मुझे किसी को दुःखी करने का कोई इरादा नहीं है
भाई मैं तो इतिहास का विद्यार्थी रहा हूं और अक्सर मैं परिस्थितियों को इतिहास से तौलने की कोशिश करता हूं, इससे समय के साथ समाज में आये बदलावों एंव परिस्थितियों को साफ तौर पर समझा जा सकता है, खैर मेरी राय तो यही है।
पहले होता था कि यदि सेना हार जाती या फिर प्रजा पर कोई परेशानी आती थी तो नेतृत्व को अपनी को अपनी जिम्मेदारी लेनी पड़ती थी, मेरे यहां कहने का मतलब है कि आजकल हमारी केन्द्र सरकार भी कुछ ऐसा ही कर रही है.........एक तरफ तो महंगाई बढा रही है तो दूसरी तरफ कहती है कि मंहगाई रोकना मेंरे वश की बात नहीं है अर्थात हमारी विवश कठपुतली केंद्र सरकार, विवश लोगों को सामने रख कर यह साफ उदाहरण दे रही है कि उनमें सरकार चलाने कि योग्यता तो नहीं है लेकिन हमें बेवकूफ बनाए रख सकती है और इस तरह इसने सारे इस बवाल की जिम्मेदारी भी ले ली और बच भी गये।
संवैधानिक रूप से कहा जाता है कि हम लोकतंत्र में रहते हैं और हमारा देश लोकतांत्रिक है, मोटा- मोटा कहीं लिखा था कि इसका मतलब है जनता का शासन, जनता के द्वारा, जनता के लिए होता है पर यहां ऐसा कहां है ? कृपा करके कोई हमें बता सकता है...........?
हां.... यहां अवश्य जनता का शासन हो रहा है और जनता के द्वारा ही हो रहा है लेकिन जनता के लिए ही हो रहा है ये बात मेंरी समझ में नहीं आती, अरे साहब हम जनता हैं जो भूख, प्यास, नंगेपन से मर रहे हैं उपर से महंगाई की महामारी ने हमें ऐसी दोराहे पर लाकर खडा कर दिया है जहां ना हम आत्म हत्या कर सकते हैं क्यों कि हमारे पीछे हमारी पीढी है और ना ही एैसी शर्मनाक जिंदगी जी सकते हैं जहां रोज ही अपने परिवार के भूखे सोने का डर सताता हो, आखिर हम मध्यमवर्गीय लोगों की सुनने वाला कौन है।
आखिर हमने आपकों सरकार बनाया और आप अक्सर सभाओं में हमारी बातों को समझने और महसूस करने का ढोंग भी रचाते रहते हो....अभिनय की पराकाष्ठा तो तब हो जाती है कि आपके युवराज हमारे यहां आकर खाते हैं, सोते हैं और फिर भूल जाते हैं कि वे जहां रोटी खाये थे वे मजदूर की कमाई थी और आज आपकी सरकार ने ऐसा किया है कि अब उस कमाई में रोटी नहीं आती है शायद अब घर भी उसे बेचना पडे फिर अगले चुनाव में कहां आ कर विश्राम किजीएगा जनाब ?
हां, यह सत्य है कि आपको पीछले 60 सालों के शासन का तजुर्बा है जिसमें कुछ तो अंग्रेजी औपनिवेशकों ने आपको सीखाया था, तभी तो आप अच्छी तरह से जानते हो कि कैसे घोटाले करने चाहिए और कैसे छिपाना चाहिए , किसी तरह से यदि छिप नहीं पाया तो जनता को उल्लू कैसे बनाए रखे.......... वाकई जवाब नहीं आपका आपतो वाकई सबके बाप हैं।
मै नाकारात्मक व्यक्ति नहीं हूं और ना ही नाकारात्मक सोच रहा हूं , मेरे लिहाज से अच्छा शासक एंव शासन वह होता है जो प्राथमिक रूप से पहले देश के बारे में सोचे फिर अपने जनता के परिस्थिति के बारे में परंतु यहां तो आप पहले अपने काॅमनवेल्थए फिर 2 जी, फिर आदर्श, फिर टाट्रा आदि पता नहीं कितने ऐसे है जो पता है और जो नहीं पता उसकी जानकारी तो सौभाग्य से आप ही को है, के बारे में सोचते है बाद में ये सारी चीजें आती है.... ऐसे में आप कहेंगे की इन सभी की जांच चल रही है और दोषीयों को सजा मिलेगी.......पर सरकार उन खरबों रूपयों का क्या जो विदेशी बैंको का सैर कर रहे है, साहब वो मुद्रांए भी अपने देश की है जरा पता लगा लो यार......आखिर जिम्मेदारी भी तो एक चीज होती है ये सब आपके नाक के नीचे हुआ कैसे ?.....अरे हां... समझ गये कि सीधे-सीधे आपको अपने मंत्रालयों एंव उनके खर्चों का पता कैसे होगा आपको तो अपनी कुर्सी बचाए रखनी है बाकी जो आपके गठबंधन के लोग बचा ले !ं अरे ! पंच अंगुल माना कि शासन चलाना आसान काम नहीं है परंतु लेकिन शोषण करना भी आपका काम नहीं होना चाहिए।
अब आप कहोगे शोषण कहां किया मैने........यह तो राजनीतिक साजिश है ये वक्तव्य तो किसी और विपक्षी दल से है.... तो सरकार ऐसा बिलकुल नहीं है.........हम सामान्य जनता हैं और जरा हमको भी मौका दें तो हम आंकडों में आपको बतायें कि आपने शोषण कहां-कहां किया है और कर रहे हैं पर क्या फायदा ये कोई होली तो है नहीं कि कोई गाढा रंग आपके मुंह पर लगांए सो तो आप जानते ही हैं।
देखिए कुछ न कुछ तो सारी सरकार करती है पर इस समय आप कुछ ज्यादा ही कर रहे है । हम तो अपने भारतीय नागरिक हाने का फर्ज निभा रहे हैं कि हमारी सरकार स्थिर और स्थायी बनी रहे , इसलिए आपको चेता रहे हैं कि समझ जाईये वरना इतिहास में आपको पढा था और कहीं ऐसा न हो कि मेरे बच्चे भी आपको इतिहास में हीं पढे।
जी धन्यवाद

» Read More