गाॅंधी जी और उनके व्यावहारिक आर्थिक विचार

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गाॅंधी जी ने परम्परागत रूप से किसी आर्थिक सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया। उन्होंने तो केवल भारतीय दशाओं के सन्दर्भ में व्यावहारिक विचार प्रस्तुत किये। लेकिन उनके विचारों से न केवल भारतीय अपितु विदेशी विद्वानों ने भी प्रेरणा ग्रहण की है। जहाॅं कार्ल माक्र्स वैज्ञानिकवादी था, वहाॅं गाॅंधी जी व्यावहारिक आदर्शवादी। गाॅंधी जी ने नैतिकता और मानवीय मूल्यों पर आधारित सामाजिक-आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था पर बल दिया। प्रो0 अंजीरिया के शब्दों में, ’’गाॅंधीवाद एक ओर, सरल विकेन्द्रित सामुदायिक जीवन के आदर्श तथा दूसरी ओर, वर्तमान तकनीक एवं विज्ञान की माॅंग के बीच एक समझौता है।’’ गाॅंधी जी के विचारों का शाश्वत महत्व है और यदि हमें उनमें अव्यवहारिकता का अंश दिखाई देता है, तो वह इस कारण कि आज हम पश्चिम सभ्यता से प्रभावित होकर अपने आदर्शों को भूलते जा रहे हैं।
गाॅंधी जी के विचारों और आदर्शों का क्रियात्मक रूप देने के लिये एक विशिष्ट प्रकार के वातावरण और मनोदशा का उपस्थिति आवश्यक है। उनके आर्थिक विचार ऊॅंचे मानवीय गुणों और आध्यात्मिक मूल्यों

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पर आधारित हैं। गाॅंधी जी आर्थिक विकास के लिये नैतिक मूल्यों का परत्यिाग नहीं चाहते थे। गाॅंधी चाहते थे कि अर्थशास्त्र का अध्ययन मानव-मुल्यों पर होना चाहिये तथा इसे गणितीय सूत्रों का अध्ययन करने वाला अमूर्त विज्ञान बनकर नहीं रह जाना चाहिये। उनका सर्वोदय का दर्शन स्वतन्त्रता, समानता, न्याय और बन्धुत्व के ऊॅंचे आदर्शों पर आधारित है। उनका विश्वास था कि सर्वोदय (अर्थात् ऐसी सामाजिक व्यवस्था जिसमें सीाी की पूर्ण और संगठित उन्नति हो) के आधार पर ही सच्चे स्वराज्य की स्थापना की जा सकती है।
गाॅंधी जी के विचारों की इस आधार पर आलोचना की जाती है कि उनके विचारों में व्यवहारिकता का अभाव है अथवा उन्हें कार्यन्वित करने में काफी कठिनाईयाॅं हैं। आज के भौतिकवादी युग में जहाॅं उद्देश्यों की पूर्ति के लिये अच्छे-बुरे सभी साधनों का प्रयोग किया जा रहा है, चारों ओर हिंसा का वातावरण है, मनुष्यों की समानता की भावना नहीं है, स्वार्थ की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, तथा बेईमानी और भ्रष्टाचार का बोलबाला है- ऐसे युग में गाॅंधीवादी आदर्शों को प्राप्त करना अथवा सत्य, अहिंसा, त्याग, बन्धुत्व आदि नैतिक मूल्यों की चर्चा करना कहाॅं तक उचित अथवा सम्भव हैं। आजकल जब सभी देश बड़े पैमाने पर उत्पादन के अनुसार केवल कुटीर उद्योगों की चर्चा करते रहना कहाॅं तक व्यावहारिक है? गाॅंधी जी द्वारा प्रस्तुत न्यूनतम आवश्यकताओं के विचार की इस आधार पर आलोचना की जाती है कि आवश्यकताओं को सीमित करके हम आर्थिक विकास का लक्ष्य कैसे प्राप्त कर सकते हैं? गाॅंधी जी ने व्यक्तिगत सम्पत्ति की बुराईयों को दूर करने के लिये न्यासिता का जो सिद्धान्त प्रस्तुत किया, उसे कार्यान्वित कर पाना बहुत कठिन है। आज के स्वार्थी युग में पूॅंजीपतियों के हृदय परिवर्तन द्वारा अधिक शोषण को रोक पाना कैसे सम्भव हो सकता है? गाॅंधी जी ने मशीनों के प्रयोग का विरोध किया था। यदि उनकी बात मानी जाये तो हम सदियों पुराने युग में पहुॅंच जायेंगे तथा उत्पादन के मामले में कभी भी आत्म-निर्भरता प्राप्त नहीं कर पायेंगे। इसी प्रकार जन्म-दर को घटाने के लिये विवाहित दम्पत्ति से आत्म-संयम की बात करना कहाॅं तक व्यावहारिक है?

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गाॅंधी जी के विचारों के विरूद्ध इन आलोचनाओं में अधिक सार नहीं है और न इन आलोचनाओं से उनके महत्व में कोई कमी आती है। भारत जैसे विकासशील देश की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिये उनके विचारों का विशेष महत्व है। अधिक जनसंख्या वाले देश में मशीनों के प्रयोग को बढ़ावा देने का सीधा अर्थ व्यापक बेकारी और अर्द्ध-बेकारी को निमन्त्रण देना है। गाॅंधी जी ने कुटीर उद्योगों की स्थापना का समर्थन इसी आधार पर किया कि देश की विशाल श्रमशक्ति को रोजगार देकर मानवीय समस्या का हल किया जा सके। इसी आधार पर उन्होंने भारत जैसे देश के लिये बड़े पैमाने के उत्पादन और मशीनों में प्रयोग का विरोध किया था, जो पूर्णतया उपयुक्त है। आज भले ही राजस्व-प्राप्ति के उद्देश्यों से उनके मद्य-निषेध के विचार को दफना दिया गया हो, लेकिन भारत जैसे निर्धन और पिछड़े हुये देश में मद्य के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देना क्या तर्क संगत है? गाॅंधी जी ने सादा जीवन, उच्च विचार की शिक्षा दी थी जिसके पीछे उनका उद्देश्य आर्थिक विकास को तिलांजलि देना नहीं था, अपितु समाज में व्याप्त धन-लोलुपता और स्वार्थ-प्रवृत्ति को समाप्त करना था। भारत जैसी कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्था का उद्धार उन्हीं के विचारों के आधार पर सम्भव है। उन्होंने देश की आवश्यकताओं के अनुरूप कृषि को सर्वोच्च स्थान दिया, क्योंकि वे जानते थे कृषि में अतिरेक पैदा करके ही अन्य व्यवसायों का विकास सम्भव है। उनका खादी अपनाने का विचार देशवासियों को आत्म-निर्भर बनाने की शिक्षा देता है। उनके विचारों और शिक्षाओं को भुलाने के कारण ही 28 वर्ष के नियोजित आर्थिक विकास के बावजूद देश में बेरोजगारी, आर्थिक विषमता, जनाधिक्य, व्यापक अज्ञानता और ऊॅंची-नीच की भावना, श्रम के प्रति सम्मान का अभाव, आर्थिक और राजनैतिक शक्ति का केन्द्रीकरण आदि समस्यायें विकराल रूप में उपस्थित हैं। जनता पार्टी की सरकार ने गाॅंधी जी के विचारों के अनुरूप देश के आर्थिक विकास का संकल्प किया था। इसीलिये छठी पंचवर्षीय योजना में ग्रामीण क्षेत्र के विकास हेतु अधिक धन की व्यवस्था की गई थी, कृषि की उन्नति और कुटीर उद्योगों के विस्तार पर बल दिया गया तथा 3-4 वर्षों में पूर्ण मद्य-निषेध की नीति लागू करने का कार्यक्रम रखा गया था।